यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल मध्यप्रदेश के स्थान (Places of Madhya Pradesh included in UNESCO World Heritage)
मध्य प्रदेश अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक सौन्दर्यता का धानी राज्य है | यह इसे स्थान भी है जिन्हें विश्व धरोहर के रूप में भी जाना जाता है पहले यह तीन स्थानों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में जाना जाता था लेकिन हाल ही में ओरछा की एतिहासिक धरोहरों को अस्थाई रूप से विश्व धरोहर का स्थान दे दिया है यूनेस्को ने इन चारो स्थानों को विश्व की 982. धरोहरों की सूची में शामिल किया है |
1. खजुराहो स्मारक समूह :-
खजुराहो स्मारक समूह के मन्दिर भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िले में स्थित है छतरपुर में ये मन्दिर एक छोटे कस्बे जो कि खजुराहो कस्बे के नाम से ही जाना जाता है |
खजुराहो स्मारक समूह जो कि एक हिन्दू और जैन धर्म के स्मारकों का एक समूह है ये स्मारक दक्षिण-पूर्व झांसी से लगभग 275 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्मारक समूह यूनेस्को विश्व धरोहर में भारत का एक धरोहर क्षेत्र गिना जाता है। यहाँ के मन्दिर जो कि नगारा वास्तुकला से स्थापित किये गए जिसमें ज्यादातर मूर्तियाँ कामुक कला की है अर्थात् अधिकतर मूर्तियाँ नग्न अवस्था में स्थापित है |
खहुराहो के ज्यादातर मन्दिर चन्देल राजवंश के समय 950 और 1050 ईस्वी के मध्य बनाए गए थे। एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार खजुराहो में कुल 85 मन्दिर है जो कि 12 वीं शताब्दी में स्थापित किये गए जो 20 वर्ग किलोमीटर के घेराव में फैले हुए है। वर्तमान में इनमें से, केवल 25 मन्दिर ही बच हैं जो 6वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं। विभिन्न जीवित मन्दिरों में से, कन्दारिया महादेव मंदिर जो प्राचीन भारतीय कला के जटिल विवरण, प्रतीकवाद और अभिव्यक्ति के साथ प्रचुरता से सजाया गया है |
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2.भीम बेटका की गुफा :- भीमबेटका की गुफा मध्य प्रदेश भोपाल के दक्षिण-पूर्व में 45 किलोमीटर और मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में ओबेदुल्लागंज शहर से 9 किलोमीटर की दूरी पर विंध्य पहाड़ियों के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है। ये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। यह स्थल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किमी दक्षिणपूर्व में स्थित है।
यहाँ 600 शैलाश्रय हैं जिनमें 275 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं पूर्व पाषाण काल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधियों का केंद्र रहा। यह बहुमूल्य धरोहर अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। भीमबेटका क्षेत्र में प्रवेश करते हुए शिलाओं पर लिखी कई जानकारियाँ मिलती हैं। यहाँ के शैल चित्रों के विषय मुख्यतया सामूहिक नृत्य, रेखांकित मानवाकृति, शिकार, पशु-पक्षी, युद्ध और प्राचीन मानव जीवन के दैनिक क्रियाकलापों से जुड़े हैं। चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ, लाल और सफेद हैं और कहीं कहीं पीला और हरा रंग भी प्रयोग हुआ है।
सबसे पहले इन गुफाओं को साल 1957-1958 में 'डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर' ने खोजा था। इसके बाद इस क्षेत्र को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। जिसे जुलाई 2003 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया |
3.साँची के स्तूप :-
साँची स्तूप एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है जो भोपाल शहर से लगभग 46 किमी दूर मध्यप्रदेश के साँची गाँव में स्थित है। यहाँ तीन स्तूप हैं और ये देश के सर्वाधिक संरक्षित स्तूपों में से एक हैं। पहले साँची स्तूप का निर्माण तीसरी शताब्दी में हुआ था। इसकी उंचाई लगभग 16.4 मीटर है और इसका व्यास 36.5 मीटर है। दूसरे स्तूप का निर्माण दूसरी शताब्दी में हुआ था और यह एक कृत्रिम मंच के ऊपर एक पहाड़ी की सीमा पर स्थित है। तीसरा साँची स्तूप पहले साँची स्तूप के पास स्थित है और इसमें अर्धवृत्ताकार गुंबद के ऊपर एक मुकुट है जिसे एक बहुत पवित्र स्थान माना जाता है |
सांची को किसी भी परिचय की आवश्यकता नहीं है। यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक के रूप में पहले से अंकित है। यह जगह बौद्ध धर्म के बारे में बताती है, । सांची एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जिसमें असंख्य बौद्ध संरचनाएं, स्तंभ और मठ देखने को मिलते हैं।
इन स्मारकों में से अधिकतर तीसरी और 12 वीं शताब्दी के बीच के युग की तारीख देखने को मिलती है, और सांची अब यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व विरासत स्थलों के अंतर्गत सूचीबद्ध है।
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